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Mahendra Pratap

Mahendra Pratap

महेंद्र प्रताप ने छठे दशक में काव्य रचना प्रारंभ की थी सातवें दशक में उनके दो कविता संग्रह 'स्फुलिंग' और 'ध्वान्त' प्रकाशित हुए थे और तभी काव्य चर्चा का विषय बन गए थे
महेंद्र प्रताप प्रारंभ से ही अपने परिवेश के प्रति बड़े सजग रहे हैं तेजी से बदलते देश और काल की शिनाख्त और साक्षी एक बड़ी हद तक इन कविताओं में मौजूद है इसे इतिहास को दर्ज कराने का उनका काव्यात्मक तरीका भी कह सकते हैं

बात तिब्बत की हो या बांग्लादेश की, दलित चेतना की हो या जाति आधारित राजनीति की, कश्मीर की हो या पंजाब की, इमरजेंसी की हो या 1984 के दंगों की, आतंकवाद की हो या अलगाववाद की, प्रादेशिक स्वायत्तता की हो या संघीय ढांचे से उसके तालमेल की, उनकी कविताएं इन सब से जुड़ती टकराती हैं और मूल्य विहिनता के भीतर से मूल्यों की तलाश का सपना लेती हैं यह सपना व्यक्ति का नहीं, पूरे भारतीय समाज का है व्यक्ति और समाज के तनाव के भीतर से यह उपजा है गहरी निराशा, हताशा, कटुता, मोहभंग के बावजूद महेंद्र प्रताप इस सपने को संजोने वाले कवि हैं

 

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